Friday, March 16, 2018
Monday, March 5, 2018
"बस यह ही"
राहगीर धरती की धड़कन में राहगुज़र तू,
फ़लक तेरी स्वांसों से महका है।
नूर ज़िन्दगी का आँख से बेपर्दा हुआ,
धड़कनों में प्यार की सरगम तू,
खुद ही में खुदा ही का सहर चहका है।
ग़रीबी अमीरी की क़यामत है,
अमीरी ग़रीबी से शर्मिंदा है।
ज़िन्दगी का ग़रीबखाना ही तो,
सुहाने सफ़र का अंतिम भरोसा है।
हक़ीक़त ज़ुबान सहर हो रही है,
बस यह एक डग, तेरा दरबार हो रही है।
कहकहे हैं सुनहरी धूप के,
छुप छुप के आसमानी हो रहे हैं।
-Vishwa
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