Sunday, February 25, 2018






"धन्यवाद"

पैसा-
मानव का दिया हुआ मूल्य है, जो उसे दौड़ा रहा है।
मैं-
इस रेगिस्तान का ऊँट है, जो प्यास के लिए दौड़ रहा है।
रेत-
मुट्ठी से तमाम कोशिश के बावज़ूद, खिसक रही है।
समय-
भोर की किरण; फूल के खिलने तक लुभाती है,
ज़िन्दगी का अपना यह अहसास, यात्रा कहलाती है।
सुंदरता-
इस यात्रा के गीत में, प्यार का रस हो जाती है।
बार बार, माँ याद आती है, जो इस गीत की आत्मा है।
सुबह-
यह ख़बर बहारों में फैल गयी।
सुबह हो गयी- 
सुबह हो गयी।
पैसा, मैं, रेत और समय खो गये- 
सुबह; होश हो गया।
सुंदरता, प्यार 
बस- एक गीत है; यह जहाँ।
गुंजन भोर की, सीतल छाँव दोपहर की और चांदनी रात पूर्णमा की- आनंद-आनंद समीर ह्रदय हो गयी।
धन्यवाद।
-Vishwa
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